सिंधु सागर से लेकर हिमालय तक,
जहाँ धरती की उर्वरा जमीन,
जहाँ गूंजती है स्वतंत्रता की ध्वनि,
वहाँ भारत माँ का प्यारा वतन।
संगीत है वहाँ गंगा-यमुना का,
प्रकृति है वहाँ हरी-भरी,
वहाँ बसे हैं अनेक मंदिर, मस्जिद,
कहाँ जाती है मनुष्यता की जड़ी।
लेकिन वहाँ दुख भी है, प्यास भी है,
दुश्मनों की नजरें लगी हैं,
फिर भी वतन के लिए खून बहाने को,
हँसते हुए सपूत खड़े हैं।
रामधारी सिंह 'दिनकर' की आवाज़,
गूँजती है वहाँ पर्वतों में,
"खून देकर देश को आजाद कराना,
यही है वतन की सेवा का न्यौता!"
वहाँ धरती है माँ, वहाँ आकाश पिता,
वहाँ सब मिलकर गाते हैं एक स्वर,
"देश हमारा प्यारा, देश हमारा वतन,
तेरी रक्षा के लिए हम खड़े हैं हमेशा!"