अरुणा ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत 1972 में अहमदाबाद में स्थित एक दैनिक समाचार पत्र से की थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में स्थित एक साप्ताहिक समाचार पत्र के लिए काम किया। 1978 में, उन्हें इंडियन एक्सप्रेस के लिए काम करने के लिए आमंत्रित किया गया, जहाँ वे 1991 तक रहीं।
अरुणा ने अपने पत्रकारिता करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया है, जिसमें आपातकाल, 1984 के सिख विरोधी दंगे, 1992 के मुंबई दंगे और 2002 के गुजरात दंगे शामिल हैं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, दलितों के अधिकारों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर भी व्यापक रूप से लिखा है।
अरुणा ने अपने पत्रकारिता करियर के अलावा कई पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें "द राइज़ ऑफ़ द मोदी एरा", "गुजरात: द मेकिंग ऑफ़ ए मॉडर्न स्टेट" और "भारत: द स्ट्रगल फॉर फ़्रीडम" शामिल हैं। उन्होंने कई वृत्तचित्रों का भी निर्माण किया है, जिनमें "द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ मोदी", "द गॉडेस ऑफ़ डेथ" और "द रैपिस्ट" शामिल हैं।
अरुणा को उनके पत्रकारिता कार्य के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें रामनाथ गोयनका पुरस्कार, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार शामिल हैं।
अरुणा वर्तमान में दिल्ली में रहती हैं और एक्टिविस्ट के रूप में काम करती हैं। वे कई सामाजिक आंदोलनों में शामिल हैं, जिनमें नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में आंदोलन, किसान आंदोलन और महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन शामिल हैं।